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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, October 25, 2008

अपने हाथ मलते रहे-हिन्दी शायरी

उनकी निगाहों पर ही
हमेशा मरते रहे
जो देखा उन्होंने एक नज़र
हम हर बार आहें भरते रहे
कभी कोशिश नहीं की
उनके दिल को पढने की
जो आँखों में हैं वही होगा उसमें भी
यही सोचकर उनकी संगत करते रहे
जब उन्होंने खोला दिल का राज़ तो
किसी और का नाम लिखा था
हमें कुछ फिर नहीं दिखा था
आँखे बंद कर बस अपने हाथ मलते रहे

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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