अमेरिका के एक तथाकथित ज्योतिषी ने 21 मई 2011 को प्रलय का दिन घोषित किया, मगर हुआ कुछ नहीं। विशेषज्ञों ने पहले ही बता दिया था कि कोई भी ऐसी अंतरिक्षीय आपदा की संभावना नहीं है जिससे धरती नष्ट हो जाये। इसके बावजूद लोगो को भगवान की प्राार्थना के लिये प्रेरित किया गया। बाज़ार और उसके प्रचार माध्यम लोगों को इस तरह के अंधविश्वास से दूर होने की सलाह देते रहे जो कि उनके उस व्यवसायिक कौशल का परिणाम था जिसमें एक फालतु खबर तैयार कर उस चर्चा या बहस प्रस्तुति के दौरान अपने विज्ञापनों के लिये विषय सामग्री जुटाई जाती है।
इस धरती पर अक्सर कुछ ऐसे लोग प्रकट होते हैं जो इसक नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं। तारीखें बताते हैं पर उस दिन कुछ नहीं हेाता। इन भविष्यवाणियों में हमेशा ही अंतरिक्ष से आपदा प्रकट होने का संकेत होता है क्योंकि धरती की आपदाओं से मनुष्य जाति पूरी तरह विलुप्त होने का अंदेशा नहंी होता न ही वह प्रलय की परिधि में आती हैं। जहां तक धरती पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं की बात है तो वह तो आती रहती हैं क्योकि वह स्वयं ही उसका कारण बनती है। इस संसार में सांस लेने वाले लोग अपने जीवन में अनेक आपदाओं को झेल चुके होते हैं या फिर स्वयं दूसरी जगह देखकर भूल जाते हैं।
यह संयोग ही है कि पश्चिम में रहने वाले एक फ्लाप ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की। वह पहले ही एक ऐसी भविष्यवाणी कर चुका था जो प्रकट नहीं हुई इसकेे बावजूद भारतीय प्रचार माध्यम उसकी सनसनी को भुनाते रहे। दरअसल भारत में मई का महीना संकट का ही होता है। सूर्यनारायण सीधी आंखों से भारत की तरफ ताकते हुए ऐसे लगते हैं जैसे कि नाराज हों। वायुदेवता उनके अनुयायी होने की वजह से आग साथ लेकर निकलते हैं। जलदेवता सिकुड़ने लगते हैं जैसे कि विश्राम कर रहे हों। ऐसे में मनुष्य, पशु, पक्षी और जलवायु का प्रभावित होना स्वाभाविक है। एक दूसरी मुश्किल भी है कि इसी महीने में आंधी अक्सर चलती है। जमीन सूखी होने क कारण धूल इस कदर उठती है कि राहों पर चलना कठिन हो जाता है। यह संयोग ही है कि 21 मई 2011 को हमारे देश में विकट आधंी आई। ऐसी आंधी ने उत्तर भारत के अनेक शहरों का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया। जमकर बरसात भी हुई। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि आंधी कहीं अपने वेग से सीमेंट, ईंट और लोहे से बने मकान न पास में दबाकर चली जाये।
ऐसे अवसर पर लोगों को 21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी याद आई। आंधी, बरसात और अंधेरे से जूझ चुके लोग जब सुबह आपस में मिले तो प्रलय के दिन की भविष्यवाणी को याद कर रहे थे। एक ने हमसे कहा कि ‘ः21 मई को प्रलय के दिन की भविष्यवाणी सही निकली।
हमने कहा कि ‘क्या हम स्वर्ग या नरक में मिल रहे हैं।’
वह बोले-‘क्या मतलब?
हमने कहा कि -‘प्रलय का मतलब होता है कि धरती पर जीवन का नष्ट होना। जहां तक हमारी जानकारी है उस समय धरती जलमग्न हो जाती है। जीवन की जगह जल अपना शासन करता है। अगर हम मान लें कि प्रलय की भविष्यवाणी सत्य हुई है तो इसका मतलब यह है कि हम धरती से लापता होकर कहीं दूसरी जगह मिल रहे हैं। वह दूसरी जगह स्वर्ग या नरक ही हो सकती है। जहां तक हमारे ज्ञान चक्षु देखते और कर्ण सुनते हैं वहां तक धरती के बाद यह दो ही स्थान है। जहां मनुष्य आता जाता है।
वह बोले-‘इसका मतलब तो हम नरक में मिल रहे हैं। देखो, हमारे घर की बिजली सारी रात गुल रही। बरसात की वजह से हमारी छत के एक भाग में छेद होने के कारण वहां से पानी टपकता रहा। सुबह पानी नहीं भरा। भरी दोपहर में कूलर की बात तो दूर पंखे की हवा तक नसीब नहीं हुई। हमारे लिये तो प्रलय जैसा समय था।’’
हमने कहा-‘पल में प्रलय होती है पर वह पल की नहीं होती बल्कि वह धरती से जीवन को ही समेट कर अपनी भूख शांत करती है। यह तो संकट आते जाते हैं इनसे क्या घबड़ाना?’’
वह बोले-‘वह तो समेट कर ही चली जाती । गनीमत है कि हम सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते रहे। उन्होंने हमारी सुन ली तो बच गये। हमारी आस्था में बहुत शक्ति है जिसके कारण हम बच गये।’’
हमने हंसकर कहा-‘‘यहां आकर हमारे ज्ञानचक्षु अपना काम बंद कर देते हैं। आप कह रहे हैं कि आपकी आस्था में शक्ति है तो यकीनन होगी। हम तो यह कह रहे हैं कि आपकी आस्था में महान शक्ति है जो आप स्वयं ही नहीं सारा संसार बच गया।’’
आज तक अनेक लोग आस्था और अंधविश्वास में अंतर नहीं कर पाये। यही कारण है कि ज्योतिष और भविष्यवाणी के आधार पर कोई भी बयान देकर अपना नाम कर लेता है। कभी कभी तो लगता है कि संसार में प्रलय की बात सुनकर लोग दुःखी कम खुश अधिक होते हैं। कम से कम अपने देश में तो यही लगता है। हमारे देश में अध्यात्मिक ज्ञान का विशाल भंडार है। यही कारण है कि हमारे लोग जानते हैं कि यहां आदमी अकेला आता और जाता है। लोग इस सच से इतना घबड़ाते हैं कि अपनी देह के नश्वर होने की बात को भुलाये ही रहते हैं। लोग इस बात को जानते हैं कि मृत्यु अवश्यंभावी है। अपनी मृत्यु के भय से सभी सहमे रहते है क्योंकि वह अकेला ही ले जाती है और सारा संसार यहीं धरा रहा जाता है। बस यहीं आकर हमारे देश के लोग त्रस्त हो जाते हैं कि उनके साथ कुछ नहीं जाता। हर कोई संसार का सुख अकेले भोगना चाहता है पर इससे भी किसी को खुशी नहीं होती। असली खुशी लोगों को तब मिलती है जब दूसरा के कष्ट हो। अपने पास किसी वस्तु होने का सुख तभी लोगों को मिलता है जब दूसरे के पास व न हो। लोगों की मनोवृत्ति यह है कि अगर अपनी एक आंख फूटने की कीमत पर दूसरे की दोनों फूटती हैं तो वह तैयार हो जाते हैं। प्रलय की बात उनको प्रसन्नता देती है क्योंकि यह संसार ही उनके साथ नष्ट होने वाला होता है। मतलब वह संसार के उन अंतिम लोगों में शामिल होना चाहते हैं जिनके भोग विलास के बाद यहां कुछ भी शेष नहीं रह जाता। उनको यह खुशी होती है कि यह संसार उनके बाद नहीं रहेगा। अपना अकेले जाना नहीं होगा बल्कि संगीसाथी भी साथ ही चलेंगे। इसलिये प्रलय के दिन को अपने सामने साकार होते देखना उनको सुखद अनुभूति हो सकता है।
यही कारण है कि प्रलय की सनसनी भारत में बिकना कोई बड़ी बात नहीं है। सच बात तो यह है कि बाज़ार के सौदागर इस समय सारे संसार में दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे हैं। वह चाहते हैं कि दुनियां के सारे आम मनुष्य फालतु की बातों में व्यस्त रहे। कहीं मनोरंजन तो कहीं सनसनी फैलाने के लिये फैलाने के लिये बकायत प्रायोजित साधनों का-यथा टीवी, फिल्म, समाचार पत्र पत्रिकायें तथा रेडियो-निर्माण किया गया है।
कुछ लोगों ने प्रचार माध्यमों में सवाल किया था कि आखिर प्रलय के दिन का प्रचार करने वालों को पोस्टर आदि के लिये पैसा किसने दिया था। यह प्रश्न हमारे ब्लागों से उठायी गयी विचाराधारा से उपजा है। आतंकवाद को हमने ही अपने ब्लाग पर एक व्यापार कहा था। कुछ बुद्धिमान लोग अब उसे पढ़कर कह रहे हैं। पैसे के खेल में भीे कमीशन का खेल सभी जगह है। प्रलय के दिन के प्रचारकों को पैसा इसलिये ही मिला होगा कि दस पंद्रह दिन तक लोगों को व्यस्त रखो। इस पर भारत में मई का महीना तो वैसे ही प्रलय का छोटा भाई लगता है सो सनसनी तो फैलनी थी। बहरहाल अब कुछ दिन में बरसात का आगमन भी होना है। उस समय भी बाढ़ आदि का प्रकोप रहता है। ऐसे में अगर किसी को नाम करना हो तो वह जून जुलाई अगरस्त और सितंबर में कोई दिन प्रलय का घोषित कर सकता है। बाज़ार में वह भी बिक जायेगा।