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Friday, August 29, 2008

कोई-कोई होता जो कामयाबी पचा पाता है-हिन्दी शायरी

कामयाबी का नशा होता है बुरा

सपने में भी देख ले तो

आदमी अपनी राह से भटक जाता है

सच में मिल जाये तो

और अधिक चाह में मन अटक जाता है

रातों रात सितारे की तरह

आकाश में चमकने की चाहत

होती है

बन जाये तो इंसान का पांव

भला कब जमीन पर आता है

विरला ही कोई होता है जो

कामयाबी के नशे को पचा जाता है

वरना तो इंसान अपनी ही नजरों में

सितारा बन जाता है

फिर हमेशा इतराता है

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Thursday, August 28, 2008

असली शैतानों को नकली देवता नहीं हरा सकते-हिंदी शायरी

प्रचार माध्यमों में अपराधियों की
चर्चा कुछ इस तरह ऐसे आती है
कि उनके चेहरे पर चमक छा जाती है
कौन कहां गया
और क्या किया
इसका जिक्र होता है इस तरह कि
असली शैतान का दर्जा पाकर भी
अपराधी खुश हो जाता है

पर्दे के नकली हीरो का नाम
देवताओं की तरह सुनाया जाता है
उसकी अप्सरा है कौन नायिका
भक्त है कौन गायिका
इस पर ही हो जाता है टाइम पास
असली देवताओं को देखने की किसे है आस
दहाड़ के स्वर सुनने
और धमाकों दृश्य देखने के आदी होते लोग
क्यों नहीं फैलेगा आतंक का रोग
पर्दे पर भले ही हरा लें
असली शैतानों को नकली देवता नहीं हरा सकते
रोने का स्वर गूंजता है
पर दर्द किसे आता है

कविता हंसने की हो या रोने की
बस वाह-वाह किया जाता है
दर्द का व्यापार जब तक चलता रहेगा
तब तक जमाना यही सहेगा
ओ! अमन चाहने वाले
मत कर अपनी शिकायतें
न दे शांति का संदेश
यहां उसका केवल मजाक उड़ाया जाता है

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Wednesday, August 27, 2008

भटकाव तो सभी की जिंदगी में होते-हिंदी शायरी

हमख्याल हो कोई
पर सभी हमसफर नहीं होते
हमसफर हों बहुत
पर सभी हमदम दोस्त नहीं होते
जमाने भर में पहचान बन जाये
यह ख्वाहिश तो सभी की होती
पर अपने से सब अनजान होते
रास्ते का नाम नहीं पता
मंजिल की शक्ल का अंदाज नहीं
ऐसे भटकाव तो सभी की जिंदगी में होते

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Monday, August 25, 2008

खराब सड़कों के कारण प्यार को गुडबाई-हास्य व्यंग्य कविता

बहुत दिन बाद प्रेमी आया
अपने शहर
और उसने अपनी प्रेमिका से की भेंट
मोटर साइकिल पर बैठाकर किक लगाई
चल पड़े दोनों सैर सपाटे पर
फिर बरसात के मौसम में सड़क
अपनी जगह से नदारत पाई

कभी ऊपर तो कभी नीचे
बल खाती हुई चल रही गाड़ी ने
दोनों से खूब ठुमके लगवाये
प्रेमिका की कमर में पीड़ा उभर आई
परेशान होते ही उसने
आगे चलने में असमर्थता अपने प्रेमी को जताई

कई दिन तक ऐसा होता रहा
रोज वह उसे ले जाता
कमर दर्द के कारण वापस ले आता
प्रेमिका की मां ने कहा दोनों से
‘क्यों परेशान होते हो
बहुत हो गया बहुत रोमांस
अब करो शादी की तैयारी
पहले कर लो सगाई
फिर एक ही घर में बैठकर
खूब प्रेम करना
बेटी के रोज के कमर दर्द से
मैं तो बाज आई’

प्रेमिका ने कहा
‘रहने दो अभी शादी की बात
पहले शहर की सड़के बन जायें
फिर सोचेंगे
इस शहर की नहीं सारे शहरों में यही हाल है
टीवी पर देखती हूं सब जगह सड़कें बदहाल हैं
शादी के हनीमून भी कहां मनायेंगे
सभी जगह कमर दर्द को सहलायेंगे
फिर शादी के बाद सड़क के खराब होने के बहाने
यह कहीं मुझे बाहर नहीं ले जायेगा
घर में ही बैठाकर बना देगा बाई
इसलिये पहले सड़कें बन जाने तो
फिर सोचना
अभी तो प्यार से करती हूं गुडबाई’

...............................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

Sunday, August 24, 2008

कविता का भ्रुण तो भूख और प्यास की कोख में पलता है-व्यंग्य हिंदी शायरी

एक कवि पहुंचा हलवाई की दुकान
पर और बोला
‘‘जल्दी जलेबी बना दो
कुछ कचौड़ी या पकौड़ी भी खिला दो
भूख लगी है
पानी भी पिला देना
पेट भर लूं तो दिमाग शांत हो जायेगा
उसके बाद ही लिखूंगा कविता
भूखे पेट और प्यासे दिल से
मैं कुछ भी नहीं लिख पाता’’

हलवाई बोला
‘‘कमाल है
अभी यहां एक कवि बैठा लिख रहा था
भूखा प्यासा दिख रहा था
मेरी पुरानी जान पहचान वाला था
इसलिये दया आयी
मैंने उसके पास कचैड़ी और जलेबी भिजवाई
उसने मुझे वापस लौटाई
और बोला
‘चाचा, भरे पेट और खुश दिल से भला
कभी कविता लिखी जाती है
वह तो भावविहीन शब्दों की
गठरी बनकर रह जाती है
कविता का भ्रुण तो भूख प्यास की कोख में पलता है
तभी दिल कहने के लिये मचलता है
अगर पेट भर जायेगा
तो काव्य एक अर्थहीन शब्दों का
पिटारा नजर आयेगा
आज तो सारा दिन भूख रहना है
लिखने की प्यास बुझाने के लिये यह सहना है
कविता में दर्द तभी आता’
वह तो चला गया कहकर
मुझे उसका एक एक शब्द याद आता
देर इसलिये हो रही यह सब बनाने में
क्योंकि मेरा हाथ इधर से उधर चला जाता’’

उसकी बात सुनकर घबड़ा गया कवि
‘भूल जाओ यह सब बातें
घबड़ाओगे दिन में तो डरायेंगी रातें
बिना दर्द की कविताओं का ही जमाना है
भूख से भला किसे रिश्ता निभाना है
यह सही है कि
भूख और प्यास की कोख में जो भ्रुण पलता है
वही कविता के रूप में चलता है
अगर रह सकते हो ऐसे तो
तुम भी कर लो कविताई
फिर नहीं रहोगे हलवाई
पर पहले मेरा पेट भर दो
कैसी भी बनती है लिखूंगा कविता
मुझसे ऐसे नहीं लिखा जाता

..................................
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Friday, August 22, 2008

वफादारी कोई मुफ्त में नहीं मिलती जो लोगे-व्यंग्य क्षणिकाएँ


सेठ ने मजदूर से कहा
‘तुम्हें अच्छा मेहनताना दूंगा
अगर वफादारी से काम करोगे‘
मजदूर ने कहा
‘काम का तो पैसा मै लूंगा ही
पर वफादारी का अलग से क्या दोगे
वह कोई मुफ्त की नहीं है जो लोगे
..................................

एक आदमी ने दूसरे आदमी से
‘श्वान’ कह दिया
पास ही खड़े एक
श्वान ने सुन लिया तब
उसने पास ही ऊंघ रहे दूसरे श्वान से कहा
‘चल दोनों अपने घर लौट चलें
मालिकों ने जितना घूमने का
समय दिया था पूरा हो गया
कहीं ऐसा न हो वह नाराज हो जायें
तुमने सुना नहीं,
पर सुनकर मेरा दिल बैठा जा रहा है
कहीं हमारी जगह लेने कोई
दूसरा प्राणी तो नहीं आ रहा है
ऊपर वाले ने इंसान को वफादार जो बना दिया

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Thursday, August 21, 2008

आम इंसान से अलग सजाओ, भले ही बुत बनाओ-हास्य व्यंग्य कविता

कुर्सियां सजा दी और
भेज दिया संदेश लोगों में
बुतों की तरह उस पर बैठ जाओ
इस महफिल को सजाओ
अपना मूंह बंद रखना
हमारे इशारों को समझना
तब तक बैठे रहना जब तक
कहें नहीं खड़े हो जाओ
हम जो कहें उसकी सहमति में
बस अपना सिर हिलाओ’

इंसानों की भीड़ दौड़ पड़ी
उन कुर्सियों पर बैठने के लिये
सबका यही कहना था कि
‘आम इंसानों से अलग सजाओ
चाहे भले ही हमें एक बुत बनाओ’
..........................................................

ख्वाहिशों ने इंसानों को
हांड़मांस का बुत बना दिया
इससे तो पत्थर, लोहे और लकड़ी के बुत ही भले
आशाओं को जिंदा रखने के लिये
पुजने के लिये तो मिल जाते हैं
इंसान ने तो आशाओं का दीप ही बुझा दिया
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Wednesday, August 20, 2008

इश्क का नतीजा तकदीर भी नहीं लिख पाती है-हिंदी शायरी

तन्हाई तब बोझ बन जाती है
जब यादें किसी की रोज आती है
अपनी शिकायतों से क्या उनके मन का
बोझ बढायें
अपने गम से पहले तो वह निजात पायें
दिल में रखी बात भले ही
हमारे लिये बोझ बन जाती है
जिनको भरोसा है हमारी चाहत का
वह अपनी अदायें भी दिखाते हैं
हमारी परवाह वह भी करते हैं
इस बात को छिपाते हैं
पर हम भी हैं कायल अपने जज्बातों के
छिपा लेते हैं उनसे दर्द अपना
कम्बख्त इश्क चीज ही ऐसी है
जिसका नतीजा तकदीर भी नहीं लिख पाती है
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Saturday, August 16, 2008

उल्टा झंडा, सीधा झंडा-लघुकथा

सुबह सुबह वह घर के बाहर अखबार पढ़ते हुए बाहर लोगों के सामने चिल्ला रहे थे-‘अरे, मैंने अभी टीवी पर सुना वहां पर उल्टा झंडा फहरा दिया। आज लोगों की हालत कितनी खराब हो गयी है। जरा, भी समझ नहीं है। सब जगह पढ़े लिखे लोग हैं पर अपनी मस्ती में इतने मस्त हैं कि उल्टे और सीधे झंडे को ही नहीं देख पाते। जिसे देखो अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगा पड़ा है। सब जगह भ्रष्टाचार है। किसी को देश की परवाह नहीं है तभी तो उल्टा झंडा लगाते हैं।’

वहां से उनकी जानपहचान का ही एक आदमी निकल रहा था जो अपने साथ लिफाफे में स्कूल में पंद्रह अगस्त को झंडा फहराने के लिये ले जा रहा था। वह रुका और उनकी बात सुन रहा था। अचानक उसने अपने लिफाफे से झंडा निकाला और बोला-महाशय, अच्छा हुआ आप मिल गये वरना मुझे भी पता नहीं उल्टा और सीधा झंडा कैसे होता है। जरा आप बता दीजिये।’

अब उनके चैंकने की बारी थी। वह थोड़ा सकपकाये पर तब तक उस आदमी ने अपने हाथ मेंं पकड़े लिफाफे से नये कपड़े के बने अपने झंडे को निकालकर पूरा का पूरा खोलकर उनके सामने खड़ा कर दिया। उसने भी झंडा उल्टा ही खडा+ किया था। तब वह सज्जन बोले-हां, ऐसे ही होता है सीधा झंडा।
तब तब उनका पुत्र भी निकलकर बाहर आया और बोला-‘पापा, यह आपका मजाक उड़ा रहा है इसने भी उल्टा झंडा पकड़ रखा है।’
फिर उनके पुत्र ने उस आदमी से कहा-‘मास्टर साहब, अपनी जंचाओ मत। तुम्हें पता है कि उल्टा और सीधा झंडा कैसे होता है और नहीं पता तो मैं चलकर तुम्हारे स्कूल में बता देता हूं कि उल्टा और सीधा झंडा कैसे होता है।’
दोनों का मूंह उतर गया। वह आदमी अपना झंडे का कपड़ा लिफाफे में पैक फिर अपने झोले में डालकर ले गया। उन महाशय ने भी अपने वहां मौजूद किसी आदमी से अपनी आंख नहीं मिलाई और अंदर चले गये।
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Thursday, August 14, 2008

शैतान खड़ा करना भी जरूरी है-हास्य व्यंग्य

शैतान कभी इस जहां में मर ही नहीं सकता। वजह! उसके मरने से फरिश्तों की कदर कम हो जायेगी। इसलिये जिसे अपने के फरिश्ता साबित करना होता है वह अपने लिये पहले एक शैतान जुटाता है। अगर कोई कालोनी का फरिश्ता बनना चाहता है तो पहले वह दूसरी कालोनी की जांच करेगा। वहां किसी व्यक्ति का-जिससे लोग डरते हैं- उसका भय अपनी कालोनी में पैदा करेगा। साथ ही बतायेगा कि वह उस पर नियंत्रण रख सकता है। शहर का फरिश्ता बनने वाला दूसरे शहर का और प्रदेश का है तो दूसरे प्रदेश का शैतान अपने लिये चुनता है। यह मजाक नहीं है। आप और हम सब यही करते हैं।

घर में किसी चीज की कमी है और अपने पास उसके लिये लाने का कोई उपाय नहीं है तो परिवार के सदस्यों को समझाने के लिये यह भी एक रास्ता है कि किसी ऐसे शैतान को खड़ा कर दो जिससे वह डर जायें। सबसे बड़ा शैतान हो सकता है वह जो हमारा रोजगार छीन सकता है। परिवार के लोग अधिक कमाने का दबाव डालें तो उनको बताओं कि उधर एक एसा आदमी है जिससे मूंह फेरा तो वह वर्तमान रोजगार भी तबाह कर देगा। नौकरी कर रहे हो तो बास का और निजी व्यवसाय कर रहे हों तो पड़ौसी व्यवसायी का भय पैदा करो। उनको समझाओं कि ‘अगर अधिक कमाने के चक्कर में पड़े तो इधर उधर दौड़ना पड़ा तो इस रोजी से भी जायेंगे। यह काल्पनिक शैतान हमको बचाता है।
नौकरी करने वालों के लिये तो आजकल वैसे भी बहुत तनाव हैं। एक तो लोग अब अपने काम के लिये झगड़ने लगे हैं दूसरी तरफ मीडिया स्टिंग आपरेशन करता है ऐसे में उपरी कमाई सोच समझ कर करनी पड़ती है। फिर सभी जगह उपरी कमाई नहीं होती। ऐसे में परिवार के लोग कहते हैं‘देखो वह भी नौकरी कर रहा है और तुम भी! उसके पास घर में सारा सामान है। तुम हो कि पूरा घर ही फटीचर घूम रहा है।
ऐसे में जबरदस्ती ईमानदारी का जीवन गुजार रहे नौकरपेशा आदमी को अपनी सफाई में यह बताना पड़ता है कि उससे कोई शैतान नाराज चल रहा है जो उसको ईमानदारी वाली जगह पर काम करना पड़ रहा है। जब कोई फरिश्ता आयेगा तब हो सकता है कि कमाई वाली जगह पर उसकी पोस्टिंग हो जायेगी।’
खिलाड़ी हारते हैं तो कभी मैदान को तो कभी मौसम को शैतान बताते हैं। किसी की फिल्म पिटती है तो वह दर्शकों की कम बुद्धि को शैताना मानता है जिसकी वजह से फिल्म उनको समझ में नहीं आयी। टीवी वालों को तो आजकल हर दिन किसी शैतान की जरूरत पड़ती है। पहले बाप को बेटी का कत्ल करने वाला शैतान बताते हैं। महीने भर बाद वह जब निर्दोष बाहर आता है तब उसे फरिश्ता बताते हैं। यानि अगर उसे पहले शैतान नहीं बनाते तो फिर दिखाने के लिये फरिश्ता आता कहां से? जादू, तंत्र और मंत्र वाले तो शैतान का रूप दिखाकर ही अपना धंध चलाते हैं। ‘अरे, अमुक व्यक्ति बीमारी में मर गया उस पर किसी शैतान का साया पड़ा था। किसी ने उस पर जादू कर दिया था।’‘उसका कोई काम नहीं बनता उस पर किसी ने जादू कर दिया है!’यही हाल सभी का है। अगर आपको कहीं अपने समूह में इमेज बनानी है तो किसी दूसरे समूह का भय पैदा कर दो और ऐसी हालत पैदा कर दो कि आपकी अनुपस्थिति बहुत खले और लोग भयभीत हो कि दूसरा समूह पूरा का पूरा या उसके लोग उन पर हमला न कर दें।’
अगर कहीं पेड़ लगाने के लिये चार लोग एकत्रित करना चाहो तो नहीं आयेंगे पर उनको सूचना दो कि अमुक संकट है और अगर नहीं मिले भविष्य में विकट हो जायेगता तो चार क्या चालीस चले आयेंगे। अपनी नाकामी और नकारापन छिपाने के लिये शैतान एक चादर का काम करता है। आप भले ही किसी व्यक्ति को प्यार करते हैं। उसके साथ उठते बैैठते हैं। पेैसे का लेनदेन करते हैं पर अगर वह आपके परिवार में आता जाता नहीं है मगर समय आने पर आप उसे अपने परिवार में शैतान बना सकते हैं कि उसने मेरा काम बिगाड़ दिया। इतिहास उठाकर देख लीजिये जितने भी पूज्यनीय लोग हुए हैं सबके सामने कोई शैतान था। अगर वह शैतान नहीं होता तो क्या वह पूज्यनीय बनते। वैसे इतिहास में सब सच है इस पर यकीन नहीं होता क्योंकि आज के आधुनिक युग में जब सब कुछ पास ही दिखता है तब भी लिखने वाले कुछ का कुछ लिख जाते हैं और उनकी समझ पर तरस आता है तब लगता है कि पहले भी लिखने वाले तो ऐसे ही रहे होंगे।
एक कवि लगातार फ्लाप हो रहा था। जब वह कविता करता तो कोई ताली नहीं बजाता। कई बार तो उसे कवि सम्मेलनों में बुलाया तक नहीं जाता। तब उसने चार चेले तैयार किये और एक कवि सम्मेलन में अपने काव्य पाठ के दौरान उसने अपने ऊपर ही सड़े अंडे और टमाटर फिंकवा दिये। बाद में उसने यह खबर अखबार में छपवाई जिसमें उसके द्वारा शरीर में खून का आखिरी कतरा होने तक कविता लिखने की शपथ भी शामिल थी । हो गया वह हिट। उसके वही चेले चपाटे भी उससे पुरस्कृत होते रहे।
जिन लड़कों को जुआ आदि खेलने की आदत होती है वह इस मामले में बहुत उस्ताद होते हैं। पैसे घर से चोरी कर सट्टा और जुआ में बरबाद करते हैं पर जब उसका अवसर नहीं मिलता या घर वाले चैकस हो जाते हैं तब वह घर पर आकर वह बताते हैं कि अमुक आदमी से कर्ज लिया है अगर नहीं चुकाया तो वह मार डालेंगे। उससे भी काम न बने तो चार मित्र ही कर्जदार बनाकर घर बुलवा लेंगे जो जान से मारने की धमकी दे जायेंगे। ऐसे में मां तो एक लाचार औरत होती है जो अपने लाल को पैसे निकाल कर देती है। जुआरी लोग तो एक तरह से हमेशा ही भले बने रहते हैं। उनका व्यवहार भी इतना अच्छा होता है कि लोग कहते हैं‘आदमी ठीक है एक तरह से फरिश्ता है, बस जुआ की आदत है।’
जुआरी हमेशा अपने लिये पैसे जुटाने के लिये शैतान का इंतजाम किये रहते हैं पर दिखाई देते हैं। उनका शैतान भी दिखाई देता है पर वह होता नहीं उनके अपने ही फरिश्ते मित्र होते हैं। वह अपने परिवार के लोगों से यह कहकर पैसा एंठते हैं कि उन पर ऐसे लोगों का कर्जा है जिनको वापस नहीं लौटाया तो मार डालेंगे। परिवार के लोगो को यकीन नहीं हो तो अपने मित्रों को ही वह शैतान बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाता है। आशय यह है कि शैतान अस्तित्व में होता नहीं है पर दिखाना पड़ता है। अगर आपको परिवार, समाज या अपने समूह में शासन करना है तो हमेशा कोई शैतान उसके सामने खड़ा करो। यह समस्या के रूप में भी हो सकता है और व्यक्ति के रूप में भी। समस्या न हो तो खड़ी करो और उसे ही शैतान जैसा ताकतवर बना दो। शैतान तो बिना देह का जीव है कहीं भी प्रकट कर लो। किसी भी भेष में शैतान हो वह आपके काम का है पर याद रखो कोई और खड़ा करे तो उसकी बातों में न आओ। यकीन करो इस दुनियां में शैतान है ही नहीं बल्कि वह आदमी के अंदर ही है जिसे शातिर लोग समय के हिसाब से बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।
एक आदमी ने अपने सोफे के किनारे ही चाय का कप पीकर रखा और वह उसके हाथ से गिर गया। वह उठ कर दूसरी जगह बैठ गया पत्नी आयी तो उसने पूछा-‘यह कप कैसे टूटा?’उसी समय उस आदमी को एक चूहा दिखाई दिया।
उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने तोड़ा!
’पत्नी ने कहा-‘आजकल चूहे भी बहुत परेशान करने लगे हैं। देखो कितना ताकतवर है उसकी टक्कर से इतना बड़ा कप गिर गया। चूहा है कि उसके रूप में शेतान?"
वह चूहा बहुत मोटा था इसलिये उसकी पत्नी को लगा कि हो सकता है कि उसने गिराया हो और आदमी अपने मन में सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा कर रहा कि उसने समय पर एक शैतान-भले ही चूहे के रूप में-भेज दिया।
’याद रखो कोई दूसरा व्यक्ति भी आपको शैतान बना सकता है। इसलिये सतर्क रहो। किसी प्रकार के वाद-विवाद में मत पड़ो। कम से कम ऐसी हरकत मत करो जिससे दूसरा आपको शैतान साबित करे। वैसे जीवन में दृढ़निश्चयी और स्पष्टवादी लोगों को कोई शैतान नहीं गढ़ना चाहिए, पर कोई अवसर दे तो उसे छोड़ना भी नहीं चाहिए। जैसे कोई आपको अनावश्यक रूप से अपमानित करे या काम बिगाड़े और आपको व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हो तो उस आदमी के विरुद्ध अभियान छेड़ दो ताकि लोगों की दृष्टि में आपकी फरिश्ते की छबि बन जाये। सर्वतशक्तिमान की कृपा से फरिश्ते तो यहां कई मनुष्य बन ही जाते हैं पर शैतान इंसान का ही ईजाद किया हुआ है इसलिये वह बहुत चमकदार या भयावह हो सकता है पर ताकतवर नहीं। जो लोग नकारा, मतलबी और धोखेबाज हैं वही शैतान को खड़ा करते हैं क्योंकि अच्छे काम कर लोगों के दिल जीतने की उनकी औकात नहीं होती।
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Friday, August 8, 2008

बेहतर है खुद अपने पीर बन जायें-हिंदी शायरी

जिनको माना था सरताज
वह असलियत में सियार निकल आये
भरोसा किया था जिन पर
वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये
उनके लिये लड़ते हुए थकेहारे
सब कुछ गंवा दिया
इसलिये हम कसूरवार कहलाये
...............................................

अपनी जिंदगी के राज किसको बतायें
अपने गमों से बचने के लिये सब मजाक बनायें
टूटे बिखरे मन के लोगों का समूह है चारों तरफ
किसके आसरे अपना जहां टिकायें
बेहतर है खुद ही अपने पीर बन जायें
आकाश में बैठे सर्वशक्तिमान को किसने देखा
और कौन समझ पाया
फिर जब दूसरे बन जाते है पहुंचे हुए
तो हम खुद क्यों पीछे रह जायें

.....................................

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Tuesday, August 5, 2008

यही है जिंदगी का फिलासफा-हिन्दी शायरी

हम तो कातिल कहलाये

हो गयी थी उनको पल भर देखने की खता

उन्हें इंतजार था किसी और का

हमारी नजरे मिलने से इसलिये हो गये वह खफा

कैसे दें हम सफाई कि

रुक गयी थी दिल की धड़कनें

देखकर उनकी आखों के देखने की अदा

जुबान से निकला तो जाता रहेगा मजा

प्यार में राज को राज रहने दो

यही है जिंदगी का फिलासफा
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Saturday, August 2, 2008

फिर शुरू होता है सुबह से छलावा-हिंदी शायरी

चिल्ला चिल्ला कर वह

करते हैं एक साथ होने का दावा

यह केवल है छलावा

मन में हैं ढेर सारे सवाल

जिनका जवाब ढूंढने से वह कतराते

आपस में ही एक दूसरे के लिये तमाम शक

जो न हो सामने

उसी पर ही शुबहा जताते

महफिलों में वह कितना भी शोर मचालें

अपने आपसे ही छिपालें

पर आदमी अपने अकेलेपन से घबड़ाकर

जाता है वहां अपने दिल का दर्द कम करने

पर लौटता है नये जख्म साथ लेकर

फिर होता है उसे पछतावा

रात होते उदास होता है मन सबका

फिर शुरू होता है सुबह से छलावा
.................................................

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