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Friday, August 22, 2008

वफादारी कोई मुफ्त में नहीं मिलती जो लोगे-व्यंग्य क्षणिकाएँ


सेठ ने मजदूर से कहा
‘तुम्हें अच्छा मेहनताना दूंगा
अगर वफादारी से काम करोगे‘
मजदूर ने कहा
‘काम का तो पैसा मै लूंगा ही
पर वफादारी का अलग से क्या दोगे
वह कोई मुफ्त की नहीं है जो लोगे
..................................

एक आदमी ने दूसरे आदमी से
‘श्वान’ कह दिया
पास ही खड़े एक
श्वान ने सुन लिया तब
उसने पास ही ऊंघ रहे दूसरे श्वान से कहा
‘चल दोनों अपने घर लौट चलें
मालिकों ने जितना घूमने का
समय दिया था पूरा हो गया
कहीं ऐसा न हो वह नाराज हो जायें
तुमने सुना नहीं,
पर सुनकर मेरा दिल बैठा जा रहा है
कहीं हमारी जगह लेने कोई
दूसरा प्राणी तो नहीं आ रहा है
ऊपर वाले ने इंसान को वफादार जो बना दिया

.....................................................
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Nitish Raj said...

ऑफिस में सभी इस बात से इक्तफाक रखते हैं कि वफादारी कोई मुफ्त में नहीं मिलती।

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