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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, August 5, 2008

यही है जिंदगी का फिलासफा-हिन्दी शायरी

हम तो कातिल कहलाये

हो गयी थी उनको पल भर देखने की खता

उन्हें इंतजार था किसी और का

हमारी नजरे मिलने से इसलिये हो गये वह खफा

कैसे दें हम सफाई कि

रुक गयी थी दिल की धड़कनें

देखकर उनकी आखों के देखने की अदा

जुबान से निकला तो जाता रहेगा मजा

प्यार में राज को राज रहने दो

यही है जिंदगी का फिलासफा
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1 comment:

समयचक्र said...

deep ji
bahut sundar or kavy rachanaye likhate rahiye. dhanyawaad.

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