जब यादें किसी की रोज आती है
अपनी शिकायतों से क्या उनके मन का
बोझ बढायें
अपने गम से पहले तो वह निजात पायें
दिल में रखी बात भले ही
हमारे लिये बोझ बन जाती है
जिनको भरोसा है हमारी चाहत का
वह अपनी अदायें भी दिखाते हैं
हमारी परवाह वह भी करते हैं
इस बात को छिपाते हैं
पर हम भी हैं कायल अपने जज्बातों के
छिपा लेते हैं उनसे दर्द अपना
कम्बख्त इश्क चीज ही ऐसी है
जिसका नतीजा तकदीर भी नहीं लिख पाती है
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
अपने गम से पहले तो वह निजात पायें....दिल की बात हमारे लिए बोझ बन जाती है...वाह...
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