कामयाबी का नशा होता है बुरा
सपने में भी देख ले तो
आदमी अपनी राह से भटक जाता है
सच में मिल जाये तो
और अधिक चाह में मन अटक जाता है
रातों रात सितारे की तरह
आकाश में चमकने की चाहत
होती है
बन जाये तो इंसान का पांव
भला कब जमीन पर आता है
विरला ही कोई होता है जो
कामयाबी के नशे को पचा जाता है
वरना तो इंसान अपनी ही नजरों में
सितारा बन जाता है
फिर हमेशा इतराता है
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सपने में भी देख ले तो
आदमी अपनी राह से भटक जाता है
सच में मिल जाये तो
और अधिक चाह में मन अटक जाता है
रातों रात सितारे की तरह
आकाश में चमकने की चाहत
होती है
बन जाये तो इंसान का पांव
भला कब जमीन पर आता है
विरला ही कोई होता है जो
कामयाबी के नशे को पचा जाता है
वरना तो इंसान अपनी ही नजरों में
सितारा बन जाता है
फिर हमेशा इतराता है
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
बेहतरीन...
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