वह असलियत में सियार निकल आये
भरोसा किया था जिन पर
वह मतलब निकालकर होशियार कहलाये
उनके लिये लड़ते हुए थकेहारे
सब कुछ गंवा दिया
इसलिये हम कसूरवार कहलाये
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अपनी जिंदगी के राज किसको बतायें
अपने गमों से बचने के लिये सब मजाक बनायें
टूटे बिखरे मन के लोगों का समूह है चारों तरफ
किसके आसरे अपना जहां टिकायें
बेहतर है खुद ही अपने पीर बन जायें
आकाश में बैठे सर्वशक्तिमान को किसने देखा
और कौन समझ पाया
फिर जब दूसरे बन जाते है पहुंचे हुए
तो हम खुद क्यों पीछे रह जायें
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
बढ़िया.
उम्दा प्रस्तुति.
बहुत खूब.
आभार इसे प्रस्तुत करने का.
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